Wednesday, September 24, 2008

बहुत उदास हु मैं..

मेरे करीब तो आओ

बहुत उदास हु मैं..

कोई आस तो दे जाओ...

बहुत निराश हु मैं..!!

तुम्हें हर पल सामने..

देखने की चाहत है..

मुझसे दूर न जाओ

मेरे पास तो आओ..

बहुत उदास हु मैं..!!


सांसे रूकती है तुम बिन..

जरा हाथ बढाओ ..

थोड़ा मुझेभी मनाओ..

बहुत उदास हु मैं..!!

लौट आओ, आ भी जाओ

यु तनहा कर के मुझे..

मुझसे दूर न जाओ..

अब मान भी जाओ..

कि बहुत उदास हु मैं..!!

देखो सांसे थमती है..

खुशिया रोती है तुम बिन..

अश्क बहते है..,

तनहा मरती है, तुम बिन..

अब आ भी जाओ

कि बहुत उदास हु मैं..!!

भवर ...!!

धू- धू कर के
जख्मो की ज्वाला
नाज़ुक मन को
चिरकन - चिरकन कर
जलाये जा रही है..

मैं पीड़ा से व्याकुल
आहों में डूबी
थरथराती सी काया लिए
क्रंदन करती हुई
अरमानो की पोटली
समेटे..
जलते हुए..काले काले कागजों के
मानो छर्रे बन
उड़ती जा रही हू...!!

असहाए सी
अथाह गगन में
कटी पतंग की भान्ती
गिरती पड़ती सी....!!
विवश..
जिंदगी की डोर
हाथो से फिसलती जा रही है..

मैं कुछ नही कर सकती
मेरे अरमानो की....
मेरे जीवन की नैया
भवर में,
तुफानो मे घिरी है..
मैं असहाए..
निरीह प्राणी मात्र
उस उपर वाले का खेल
रीति आँखों से देख रही हू!!

मेरी दुवाए बे-असर हो गई है..
मेरी उम्मीदे सब जल चुकी है..
सिर्फ़ रह गया है..
तो बस..
क्रंदन...विलाप
इस बाकी की बची जिंदगी पर..
जिसे ढोना पड़ रहा है..
न चाहते हुई भी..!!

मैं कुछ नही कर सकती
बस मैं निरीह प्राणी मात्र
उस उपर वाले का खेल
रीति आँखों से देख रही हू!!

जिंदगी और बता गम कितने तू मुझे देगी.....??

जिंदगी और बता गम कितने तू मुझे देगी..
मे हँसता जाऊंगा..क्या हँसी मेरी तू छीन लेगी..

जिंदगी और बता गम कितने तू मुझे देगी.....??

मस्त चाले तू देख मेरी ना गश खाना..
ढेरो ठोकरे दे...मगर तू ना थक जाना..
सागर के हिलोरो से ऐ जिंदगी तू न बच पाएगी..
गम चाहे दे तू कितने भी...लौट के तो जायेगी...!!

जिंदगी और बता गम कितने तू मुझे देगी.....??

हंस-हंस क इस्तेकबाल करूँगा मै तेरा ...
ज़िस्त भी चाहे छूटे...उफ़ ना लब पे मेरे होगी..
काँटों की चादर मे सुला दे चाहे इस तनहा रूह को..
हंस के बलाए लूँगा...रुसवा न रुख से हँसी मेरे होगी...

जिंदगी और बता गम कितने तू मुझे देगी.....??

कोई जान भी ना पायेगा गम की दुनिया मेरी..
पलती हे जो भीतर ही...छुप के दिल के कोनो में...
रोएगी ने मेरी आँख..तू देखना जानिब-ऐ-जिंदगी मेरी...
लौट जायेगी तू एक दिन तो टकरा -टकरा के रूह से मेरी...


जिंदगी और बता गम कितने तू मुझे देगी.....??
मै हसता जाऊंगा....क्या हसी भी मेरी तू छीन लेगी...!!

Tuesday, September 23, 2008

तुझे तो बस जीना है तनहा...!!


तुझे तो बस जीना है तनहा...!!
कोई ख़ुशी नहीं तनहा..
कोई हंसी नहीं है तेरे लिए..
कोई नहीं है तेरा यहाँ..
तुझे तो बस जीना है तनहा...!!

कितनी भी भीख मांग ले तू..
कोई भी खुशबु तेरी नहीं है
कितने फूल इस संसार में खिले है..
कितने रंग बिखरे हुऐ है..
किसी को न छूना तू तनहा..
ये सब तेरे लिए नहीं है..

न कोई तेरा अपना है..
न कोई खवाब है तेरे लिए..
तू लाख बना गैरों को अपना..
तेरे दर्द से मगर सरोकार किसी को नहीं है..

तुझे तो बस तदफ्ना है..
झूटी हंसी में जीना है..
यु ही जिंदगी को जीना है..

कोई ख़ुशी नहीं तनहा..
कोई हंसी नहीं है तेरे लिए..
कोई नहीं है तेरा यहाँ..
तुझे तो बस जीना है तनहा...!!

Monday, September 22, 2008

तू अपने आप मे इतना दम रख ले..!!

दोस्तों ये आशार मैंने अपनी एक दोस्त को जवाब के रूप मे लिखे थे जो की मायूसियों के दौर से गुज़र रही थी....सोचा आप सब क लिए पेश करू..और अपनी एक दोस्त की रेकुएस्ट भी पूरी कर दू ...उम्मीद है आप को अच्छे लगेंगे ....


आंधियो का भी मुख मोड़ देता है..
नदियों के भी रास्ते बदल देता है..
खुदा को भी जो झुका देता है..
ऐ दोस्त..वो सिर्फ़ इंसान होता है..!!

खुदा भी आकर तुझ से तेरी रज़ा पूछे..
तू अपने आप मे इतना दम रख ले..
खुशिया आकर तेरे कदम चूमे..
तू गम-ऐ-जिंदगी को बदस्तर कर दे.!!

देख अपनों के मासूम चेहरों को..
जीने की नई राह कर ले..
दम भर अपने आप मे इतना..कि
मायुसिया झुक जाए तेरे कदमो तले॥

रौनके बनी रहे..जिंदगी मे..
आज गम पर हसी की जीत कर दे..
जो दूर रह कर भी तेरी तवज्जो करता है..
उसी को अपनी जिंदगी कर दे.!!

खुदा भी आकर तुझ से तेरी रज़ा पूछे..
तू अपने आप मे इतना दम रख ले..!!

तेरी दूरिया मुझसे इतनी क्यों है?

तेरी दूरिया मुझसे इतनी क्यों है?
इन दूरियों का दर्द इतना बे-दर्द क्यों है?

हर अरमान पर यु जलती हु कि ...
तेरी जुदाई की सलाखे सी लगती क्यों है?

न चाह कर भी...
ये साँसे आती-जाती क्यों है?

हर साँस पर तेरा नाम है
फ़िर तुझ बिन ये चलती क्यों है?

तेरा आ कर चले जाना मार तो जाता है..
फ़िर ये जिंदा लाश चलती क्यों है??

भर जाता है इतना दर्द क्यों सीने मे?
रूह भी ज़ार - ज़ार होती क्यों है

Sunday, September 21, 2008

आज तो जी भर के चाहो मुझे..!!

आज मुझे यु आधा-अधुरा सा छोड़ दिया
आज मुझे यु थोड़ा सा छू कर छोड़ दिया
में जानती हु ये बदन अब हमारे मुरझाने लगे हे..
मगर 'जानू' दिल के अरमान जलाने लगे है..

कभी तो जी भर के चाहो मुझे..
जिंदगी का एक पुरा दिन तो दे दो मुझे..
प्यासा न रह जाए ये सागर कहीं.
अपने प्यार के सावन में नहला दो मुझे..

सांझ होने से पहले बरस जाओ तुम..
जिंदगी तमाम होने से पहले..
बदली सी बन के गुज़र जाओ तुम...!!

कोई शिकवा न रहे सागर को..
जिंदगी से रुखसत होते हुऐ॥
तद्फे न वो फ़िर किसी क लिए..
जन्मो से प्यासी रूह को तृप्त हो जाने दो..

प्यासे सागर की प्यास बुझ जायेगी..
तनहा सागर की तन्हायी मिट जायेगी..
भटकती रूह को नई जिंदगी मिल जायेगी...!!

एक तुम ही तो महासागर हो मेरे
में तो नीरीह नदिया हू जो...
बहती है बस तुमारे लिए...

आज यु आधा -अधूरा न छोड़ जाओ मुझे..
छू कर मुझे यु न तदफाओ प्रिये..!!

आज फ़िर सीने मे दर्द की गहराई है

आज हर तरफ़ तन्हाई है..
आज सीने मे फ़िर दर्द की गहराई है

आज कोई पथ्हर ना मारो सागर में
आज लहरें दूर तक दर्द से फैली है..

आज आँखे दर्द-ऐ- समुंदर से बोझिल हें
आज होठो पे गम की आहे है..

आज अंधेरे साए आकर डराते हें..
आज फ़िर बदनसीबी की छाया है..

आज दर्द फ़िर हसी पे जीता है..
आज फ़िर जख्मो से दर्द रिसता है..

आज नासूर फ़िर से भबके है..
आज सागर फ़िर तन्हाई मे रोया है..

आज फ़िर एक कमी ने जिंदगी को सताया हे..
आज सागर सागर होकर भी अधुरा है..

Saturday, September 20, 2008

चीर दे मेरे लिए भी कोई कफ़न..!!

झूठी तसल्लियो से दिल नही भरता अब तो..
नसीबो मे खुशिया है ही नही..
गमो की काली स्याह राते हटती भी नही..
और जिंदगी ख़ुद से मिटाई जाती भी नही..!!

ऐ खुदा एक एहसान कर दो मुझ पर..
जान ले लो मेरी या इस दिल को पथ्हर कर दो..
जिया जाता नही इस दर्द-ऐ-दिल क साथ
लाश ख़ुद के कंधो पर उठती भी नही..!!

तोड़ दो सारे बंधन, मुक्त कर दो मुझे..
बदनसीबी,बे-वफाई,जुदाई और दर्द..
बस क्या यही थे मेरी जिंदगी के हमसफ़र
चीर दो मेरे लिए भी कोई कफ़न..!!

झूटी तसल्लियो से दिल नही भरता अब तो..

रूह फरफराती है बंद पिंजरे के पंछी की माफिक
क्यों ये पिंज़र दिया खुदा तुमने...
नही था गर कोई खुशी का एक भी पल देने को तो..
क्यों ये जिंदगी बनायी तुमने..!!

बस क्या यही थे मेरी जिंदगी के हमसफ़र
चीर दे मेरे लिए भी कोई कफ़न..!!

झूठी तसल्लियों से दिल नही भरता अब तो..

रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..

रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..
शायद कोई खुशी का फूल खिले..
इसलिए जिंदगी को झूटी हँसी की सौगात देती हू..
रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..

भीगी पलकों से हर कांटे को बौछार देती हू..
शायद शूलो की चुभन कम हो जाए..
इसलिए इन्हे आंसुओ का सामान देती हू..
रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..!!

फलसफा सीखा था जिंदगी का..
की आज गमो को हँसी मे डुबो दो..
इसलिए बेहतर कल की आस मे मुस्कुरा देती हू..
रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..

कट चुकी है आधी जिंदगी मंजिलो की तलाश मे..
न मंजिले मिली ना जीने की नही राह..
इसलिए जिंदगी को और उमीदो का बहाव देती हू..
रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..

हसदे हसदे दुनिया छड़ जावांगे अस्सी..

तेनु आंख दे हंजू ना दिखावांगे अस्सी...
जे दिल दुख्या ते कोने जा के रो लेवांगे अस्सी..
जे पीड़ होई दिल विच ते आह भर लेवांगे अस्सी..
ठंदिया ठंदिया सावा विच होठ सी लेवांगे अस्सी..
मौत दी ज़मीन दे नाम छद्डे ने सारे....
ओंज़ ते इंज ही दुनिया छद्डे ने सारे..
हसदे..हसदे...अपनी मुस्कुराह्टा दे निशाँ छड़ जावांगे अस्सी..
हसदे -हसदे दुनिया छड़ जावांगे अस्सी..!!

Thursday, September 18, 2008

मै और मेरी तन्हाई...

में और मेरी तन्हाई..
कब से फैले है..
मन-आंगन में..
बातें करते है..
क्यों तन्हाई तुम रोज़
चली आती हो..मेरे आँगन में..
बिन बुलाये - मेहमान की तरह..!!
रोज़ एक टीस लेकर आती हो..
मेरी आँखों को नमी देती हो
और फ़िर क्यों मेरी जिंदगी में..
चहू ओर मन-ओ-मस्तिष्क में..
अपना घर बसा कर
बैठ जाती हो...

मै और मेरी तन्हाई..
यु ही बातें करते है..

मै दूर जाना चाहती हू तुमसे..
मै हर रिश्ता तोर देना चाहती हु तुमसे..
मै नही चाहती तुम्हें...
कभी कभी तो भरी महफिल में भी
तुम मुझे आ सताती हो..
क्यों नही जाती तुम..
क्यों नही छोरती मेरा पीछा तुम..

मै और मेरी तन्हाई..
यू ही बातें करते है..!!

देर रात तक मेरे संग
मेरे सिरहाने लग...
मुझसे गल-बहिया डाल..
साथ सोयी रहती हो..
देर आँखों में बसी रहती हो..
अथहाह समुंदर की तरह ..
कोई किनारा तुमारा
नज़र भी नही आता..
जहा पर जा कर तुम्हें
छोड़ आऊ....

मै और मेरी तन्हाई..
अक्सर यू ही बातें करते है..

लील रही हो तुम....
मेरी जिंदगी को दिन-रत..और रात-दिन
मै खामोश पर कटे पंछी की तरह ..
बेबस बैचैन सी..
इस जिंदगी की डाल पर बैठी
मूक सी तुम्हें निहारती रह जाती हू..
कुछ नही कर पाती इसके आलावा..

मै और मेरी तन्हाई..
अक्सर यु ही बातें करते है..

सारी खुशिया तुम रोज़..हर रोज़
छीने जा रही हो मुझसे..
क्यों..आख़िर क्यों????
चाँद पलों की हसी को भी
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हु..
सब रिश्तो से मूक हो गई हू..
घुप अंधेरो में तुम मुझे
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..

मै और मेरी तन्हाई..
अक्सर यू ही बातें करते है..

Wednesday, September 17, 2008

सात फेरों का छल ....

न जाने वो कैसे छली गई???
अपने भाग्य की रेखाओं से??

उसने तो भरोसा किया था खुदा पर
खुदा का फ़ैसला मान सर झुकाती गई...

उफ़ ये क्या खता हो गई...
सात फैरो क बंधन मे वो छली गई...!!

उम्र भर के गमो की सल्लाखो मे देखो..
बे-गुनाह...मासूम वो कैद हो गई....!!

त्याग कर के भी कई उसे दुत्कारे मिली...
न-समझ बन्दे की वो साथी बनी..

एहसास जिसको नही था..न समझ थी कोई..
एक वहशत थी जो पविर्त्र बंधन का मकसद बनी..

न अच्छा बेटा..न पति..न अच्छा पिता बन सका..
जिसकी खातिर वो सुकोमला...उसकी भार्या बनी...

बे-दर्द रस्म-ओ-रिवाजों तले बच्चो की खातिर वो घुटने लगी..
अभिशापित सा जीवन बिताना था उसको..बिताती रही..

उम्र भर के गमो की सल्लाखो मे देखो..
बे-गुनाह...मासूम वो कैद हो गई....!!

उफ़ ये क्या खता हो गई...
सात फैरो क बंधन मे वो छली गई...!!

व्याकुलता..

पल पल विचरता अवसाद दिल-ओ-दिमाग मे
कूट कूट कर भरता जाता है...!!
बैचैन जज़्बात करवटे ले-ले कर
व्याकुल मन को अंगारों सी जलन देते है..!!
मानस-पटल पर एक आता है..एक चला जाता है
विचार....चल चित्र की तरेह...!!
बार बार नाज़ुक सी फूलो सी होठो की पंखुरिया..
आह भर कर रह जाती है..
घामा-ग़म शोर है जज्बातों का..
जो उद्वेलित किए जाता है...मेरे वजूद को...!!

कोंन है...??? कोंन है....???
जो अपनी जुदाई का मुझे एहसास दिए रहता है हर पल...!!
क्यों...???? क्यों....??? नम हो रही हे मेरी साँसे??
क्यों आख़िर क्यों इंतज़ार मे झुकती ही नही ये पलके???
जानती हु आज नही आएगा वो...नही आएगा अभी वो..
क्यों बारम-बार..फ़िर हर बार मन टीस से भर उठता है??

कैसी वेदना है???? कैसी पीरा है???
असेहनीये....हर अरमान को स्वाहा किए जाती है...
मेरी आँखे नम किए जाती है...!!
अथाह पीरा से बहर जाती हु मैं..!!
आह....!! आह...!! हे व्याकुल मन तू संभल
संभल....कुछ देर और संभल...!!

थोरा थोरा हस लो...

Dosto mere ek dost ne kaha ki gam itne hai ki aansuo ne bhi saath chhor diya he..ab isiliye jhute ko hi duniyadari ki liye thora has lete hai...to unki baat per muje u kuch khayaal aaye...jo tumari nazer hai...

Hansi ko bulaoge nahi to aayegi kaise...
tumare udas dil ko sajaayegi kaise??
jb tum hi bhool gaye hasna to
hansi aayegi kaise??

vo kehti hai yaad kar..
vo kehti hai mera istekbaal kar..
tum ne jo andhero me ghar bana liya hai..
tumne jo ashko me waqt ga_vaa diya hai..
kis raah se me aau??
koi dagar na me khoj paau..!!

hansi ko bulaoge nahi to aayegi kaise...
tumare udas dil ko sajaayegi kaise??

mere masoom masiiha main
hasana chaahti hu tume..
apne paakiizgi k kadam
dikhana chaahti hu tume..
magar tum ho ki kale sayo me ja base ho..
gam ki patjher me khud ko kho chale ho..

muje bulane ko ek bar..bas ek baar
jhoote ko to hans do..
in larzte hoto ko jhuta ha sahi..
ek hansi ka manzer to de do..
me fir kehti hu tumse......

ki

hansi ko bulaoge nahi to aayegi kaise...
tumare udas dil ko sajaayegi kaise??

dekh lo bula kar muje
kuch peera kam ho jayegii..
jabardasti hi sahi..apne dil se..
kuch to sitam ki inayat ghat jayegi..

muje bulaoge nahi to bhul jaoge hasna..
muje hoto pe laaoge nahi to..
ruuth jaaungi tumse..
muje saja lo rukhsaro pe..
kuch gam hat jayenge..
muje bula lo apne paas
kuch choto ko marham lag jayenge..

hansi ko bulaoge nahi to aayegi kaise...
tumare udas dil ko sajaayegi kaise??

जिसके लिए में सजी-सवरी ....

जिसके लिए में सजी-सवरी
वो ही मुझसे जुदा हो गया

जिसके लिए मैंने गेसू लहराए
उन्ही गेसुओ के बंधन वो खोल गया.

महकाया जिसके लिए इस बदन को..
विरह की चादर में वो लिपटा गया..

आँखों में जिसके लिए काजल डाला..
तनहा अश्को का सागर वो इन्हे दे गया..

जिंदगी का खालीपन लिए अब बैठी हु में..
इस जिंदगी को वो जिन्दा रहने की दुआ दे गया..

‘तनहा सागर’ को तो रहना ही है तनहा..
इस नाम को सार्थकता देखो वो कैसे दे गया..

लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा.....

लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा - कतरा कर के....
भीतर ही भीतर ख़ुद ही में ये समा जाएगा..
तुमको तो पता भी न होगा..
कितने गम...कितनी तन्हाईया
ख़ुद ही मे ले कर मिट जाएगा..

लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा - कतरा कर के ...ख़ुद ही मे समा जाएगा..

भटकते भटकते एक दिन जब सांसे थक जाएँगी..
इन पथ्हर दिल इंसानों की नगरी से जब उमीदे टूट जाएँगी..
उपर वाले से लड़ते लड़ते जब तकदीर हार जायेगी..
उस दिन देखना तुम सागर को..
मगर फ़िर बी दर्द पर हस्ते सागर की
बस हँसी ही तुमको नज़र आएगी..

न जान पाओगे तब भी तुम...
कितने गम...कितनी तन्हाईया
ख़ुद ही मे ले कर..
ये सागर मिट जाएगा..सिमट जाएगा..!!

मेरी चाहत है की एक वक्त ऐसा भी हो जाए..
तुम मेरे लिए तद्फ़ो ..और मे इस जहान से रुखसत हो जाऊ..
तुम समझो तब अपनी बे-रुखिया ...अपने सितम..
तब तुम जी भर क रोवो....और मे भी तुमारी तरहे मुस्कुराती रहू..

सुना हे प्यार जब पुराना हो जाता हे तो
कोयले की तरेह भीतर से बस जलता रहता है..
आज मेरी भी हालत वही हो गई है..
और चाहत है की तुम वो ही कोयला बन जाओ..

देखना एक दिन यु ही दर्द से सारोबार जब ये हो जाएगा..
टूट कर जब ये नि-श्वास हो जाएगा..
लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा कतरा कर के ...
भीतर ही भीतर ख़ुद ही मे ये समा जाएगा..
तुमको तो पता भी न होगा..
कितने गम...कितनी तन्हैया
ख़ुद ही मे ले कर ये सागर मिट जाएगा..

दर्द को सीने से लगा कर भी आज करार नही..

दर्द को सीने से लगा कर भी आज करार नही..
नमी आँखों की छुपाना भी बस की बात नही..

किस से कहू..कैसे कहू दर्द-ओ-सितम उसके..
खरो.नचे दे दी बे-इंतिहा दिल पर जिसने..

सुलगी तमाम शब्, उसकी दी टीस ले कर..
कमबख्त जिंदगी फ़िर भी जिन्दा है..सब सह कर..

बर्बाद-ऐ-चमन मे दो फूल है बस..
जिनकी खातिर जिन्दा लाश जीती है बस..

खुदा ने भी बदकिस्मती से ऐसे मारा
जो न चाहा कभी वही नसीब बन गया..

हरसो चाहा....की कही ठहराव आ जाए..
चुप रह कर ही..कही जिंदगी मे करार आ जाए..

मगर दर्द को सीने से लगा कर भी आज करार नही..
नमी आँखों की छुपाना भी अब बस की बात नही..

ओ जान मेरी... गले से लगा लो..

आओं ना जान गले से लगा लो..
आँखों ही आँखों मे मुझको बसा लो..
नही सही जाती ये दुरिया अब सनम..
बाहों मे ले लो...सीने मे छुपा लो..

कही बीत जाए न ये रैना..
कही छिन जाए न ये खुशिया..
कही कोई स्याह रात चुरा ले न ये पल..
आ जाओ आ जाओ हमको अपना बना लो..

गरम साँसों का भाव कम होने से पहले..
पिघलते जिस्मो का बिखराव होने से पहले..
अरमानो की शमा बुझने से पहले..
अपने आगोश की गर्म साँसों मे बसा लो..

आओ न जान गले से लगा लो..
फैले सागर को ख़ुद मे सिमटा लो..
तपते बदन को लरजते होठो से छू लो..
चैन आ जाए..जरा प्यासे मन को सहला दो..

पलकों को चूमो..रुखसारों पर लब रख दो..
बाहों के घेरो मे बैचन जिस्म को कस दो..
जुल्फों को समेटो...या..घटाओ सा बिखरा दो..
ओ जान मेरी...बस अब गले से लगा लो..

आ जाओ ओ जान कहा हो,......???

आ जाओ ओ जान कहा हो, इस तन्हाई मे..
आन मिलो अब तो, इस काली अँधेरी रात मे..

मैं तनहा तद्पू अकेली भीगी भीगी पलकों मे.
गले लगा लो ओ जाना मुझे इस शब् की अंगडाई मे..

मेरे सूनेपन को सवारों..जरा अपनी बाहों मे भरो...
मेरा भी कोई है इस दुनिया मे..इस बात का जरा एहसास तो दो..

मैं प्यासी नदी, तुम मीठे सागर हो..
तृप्त करो इस सूखी नदिया को, मेरी बगिया भी हरी करो..

आ जाओ ओ जान कहा.न हो इस तन्हाई मे..
आन मिलो अब तो इस काली अँधेरी रात मे..

रात अँधेरी, व्याकुल मन, भटकू बियाबान जज्बातों क जंगल मे..
आ जाओ अब तो ओ जान मेरी, मेरे सुने-सुने जीवन मे...

मैं भी हस लू, मैं भी रंग भारू इस जीवन मे..
मैं भी जानू, कैसे खिलते है फूल घर-आँगन मे..

कैसे हृदये से ममता फूटे, कैसे तार बजे दिल मे..
आओ जान मुझे भी समझाओ, कैसे इन्द्रधनुष बने जीवन मे..

प्यार भरी दुनिया होती है अनोखी, कब से सुनती आई हु..
प्यार क रंग मे चुनरी रंग दो, फ़िर ख़ुद को देखू दर्पण मैं..

कैसे शर्माते है ख़ुद से, कैसे पलके झुकती है..
थोरा तो एहसास दिला दो, मेरे बंज़र से मन मे..

आ जाओ ओ जान कहा हो, इस तन्हाई मे..
आन मिलो अब तो, इस काली अँधेरी रात मे..

Main lamha dar lamha dard pita raha.....

Main lamha dar lamha dard pita raha..
dard na jane kab mujhe pii gaya..
tadaf तड़फ k aahe nikalti rahi..
na jaane kitni maut.ai main u hi marta gaya..

syaah raato sa andhera har dam chhaya raha..
har gam keher ban kar mujkho lootTa gaya..
main tinko k sahare me zindgi dhoondta raha..
na jaane meri aas ka deepak kab bujh gaya..

Kuda k dar pe maine Kitne sazde kiye ...
kitni umeedo se mannate maanga kiya..
aaj khuda ki thokro se hi behaal hu..
ghor andhero k saayo me hu kho gaya..

Aaj simat sa chuka hu gam k dhair main..
in lakiro aur badnasibi k khail main..
antim saanse bachii hai bas is tanha sagar main..
chunache maut k nakhre dekhna baaki hai bachaa..

Tuesday, September 16, 2008

हम लिखवा क लाये है..

तड़पना अपनी किस्मत मे
हम लिखवा क लाये है..
प्यार मे ठोकरे खाना..
हम लिखवा क लाये है..
सवर किस्मत नही सकती
कबी..इस उजडे चमन की..
क्युकी हर रोज़ एक मौत मरना..
हम लिखवा क लाये है..

मेरा हक़ तो नही ....!!


तुम छुपा लो कोई राज़

और मैं जानू...
ये मेरा हक़ तो नही है..!!
न जाने क्यों, फ़िर भी..
मैं ये हक़
समझ लेती हु..!!

आज जब तुम मेरे नहीं हो..
फ़िर भी, न जाने क्यों
आज मैं तुम्हें
अपना समझ लेती हु..!!

हां आज तुम्हें, मुझसे..
कुछ भी न चाहिए..
कि अब मैं तुम्हे..
परायी लगने लगी हु..!!

Tum kya doge mujhe.....

Tum kya doge muje jindgi me is gam k siva..
Tum kya doge dava jo dard tumne diya..

tumne to bas hak jatana chaaha..

tumne to bas baat manvana jana..!!

Tumne kabhi socha hi nahi mujh pe kya guzri..

Tumne kabhi dekha hi nahi kyu kar me tuuti.. bikhri...

Tum to bas avishwas k saath jiye ho..ab tak..

tum to bas apne aap k liye jiye ho.. ab tak..!!

Tumne socha hai bas apna hi sukh ab tak...

Tumne nibhaya hai ye rishta bs jarurat tak..

Tume ehsaas bhi nahi ki..Main..mar b sakti hu..Ho k tumse juda..

Tumne jaana hi nahi ki...Saans tutTi hai meri...jb tum ho jate ho khafa..

Tumne apne pyaar ki ehmiyat jatayi her pal..

mere pyar ko jid aur dikhava bataya..har dam..!!

kabi tum bhi meri tareh kuch dena jano to muje jano..

kitna mushkil he zindgi me dard sehna,
Ye jano, to khushi dena jano...!!

Tum kya doge muje jindgi me is gam k siva..

tum kya doge dava jo dard tumne diya..

tumne to bas hak jatana chaaha..

tumne to bas baat manvana jana..!!

Dil ki tamanna hai barbaad ho jaaye..


Dil ki tamanna hai barbaad ho jaaye...
Na dekhe aur gam..Na ab mukuraaye...
Dil ki tamanna hai barbaad ho jaaye...

Shabe raat jo tumne ham per keher dhaaye..
Roya Chaand saath mere..
naino ne shabnam bahaaye..

Dil ki tamanna hai barbaad ho jaaye..

Tukda Tukda ho gira dil shamma-e-raat per...
Toot Toot kar jism me maut k khanjer chubhaaye...

Saanso ne hi bas saath na chhora hamaara..
Lamha-Lamha magar ham kaber me pair laaye...

Dil ki tamanna hai barbaad ho jaaye..

tere rivaazo ne hamko jee bher k loota..
Mit chuka hai vazood tab bhi na tu baaz aaye..

Teri fitrat kisi nasoor se kam nahi hai...
Katra katra 'Tanha Sagar' ab zindgi se daaman chhurai..

Dil ki tamanna hai barbaad ho jaaye..

kya karu

Aag Seene Ki Jine Hi Na De To Kya Karu…?
Khalish Dil Ki Rooh Ko Baichain Kare To Kya Karu….?
Dhuua Armaano Ki Raakh Ka Palko Ko Bhigo Jaye To Kya Karu…?
Tapish Jakhmo Ki Zindgi Ka Har Lamha Jalaye To Kya Karu…?
Rone Ko Ashk Hai Magar Aankh Sath Na De To Kya Karu
Khoobsurat Naram Bister Ho..Mgr Sakoon Hi Na Mile To Kya Karu
Dost Hai Kehne Ko…Magar Dard Baantne Ko Na Mile To Kya Karu
Mehfile Ho Sajti Hui…Apna Kehne Ko Koi Nahi To Kya Karu..?
U Aalam Ho Kehne Ko Madhoshi Ka..Me Nashe Me Na Doob Saku To Kya Karu..
Zindgi K Jakhmo Ko Hansi Se Sehla Bhi Na Pauu To Kya Karu..
Khud Per Lagate Thahaako Se Dard K Shor Ko Na Daba Saku To Kya Karu..?
Intzaar-E- Maut Bhi Tanha Sagar Ka Bojh Hi Na Uthaaye To Kya Karu..?