Wednesday, September 24, 2008

भवर ...!!

धू- धू कर के
जख्मो की ज्वाला
नाज़ुक मन को
चिरकन - चिरकन कर
जलाये जा रही है..

मैं पीड़ा से व्याकुल
आहों में डूबी
थरथराती सी काया लिए
क्रंदन करती हुई
अरमानो की पोटली
समेटे..
जलते हुए..काले काले कागजों के
मानो छर्रे बन
उड़ती जा रही हू...!!

असहाए सी
अथाह गगन में
कटी पतंग की भान्ती
गिरती पड़ती सी....!!
विवश..
जिंदगी की डोर
हाथो से फिसलती जा रही है..

मैं कुछ नही कर सकती
मेरे अरमानो की....
मेरे जीवन की नैया
भवर में,
तुफानो मे घिरी है..
मैं असहाए..
निरीह प्राणी मात्र
उस उपर वाले का खेल
रीति आँखों से देख रही हू!!

मेरी दुवाए बे-असर हो गई है..
मेरी उम्मीदे सब जल चुकी है..
सिर्फ़ रह गया है..
तो बस..
क्रंदन...विलाप
इस बाकी की बची जिंदगी पर..
जिसे ढोना पड़ रहा है..
न चाहते हुई भी..!!

मैं कुछ नही कर सकती
बस मैं निरीह प्राणी मात्र
उस उपर वाले का खेल
रीति आँखों से देख रही हू!!

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मैं पीड़ा से व्याकुल
आहों में डूबी
थरथराती सी काया लिए
क्रंदन करती हुई
अरमानो की पोटली
समेटे..
जलते हुए..काले काले कागजों के
मानो छर्रे बन
उड़ती जा रही हू...!!

charamseema hai vyaakulta ki

असहाए सी
अथाह गगन में
कटी पतंग की भान्ती
गिरती पड़ती सी....!!
विवश..
जिंदगी की डोर
हाथो से फिसलती जा रही है..
vivashta ki sateek upama.

मैं कुछ नही कर सकती
बस मैं निरीह प्राणी मात्र
उस उपर वाले का खेल
रीति आँखों से देख रही हू!!

asaahaay rah jaane ka maarmik chitran .
mann ko chhu gayi aapki ye rachna.