Saturday, November 15, 2008
सिसकती राते..
सिसकती राते और जलते हुए दिन
आहो के तूफ़ान से सहमे खामोश लब
कब तक जी पाएंगे यू उदास सी जिंदगी..
कब तक छुपा पाएंगे यू आँखों की नमी हम ...
वो दामन भी नही..
जाकर छुप जाए जिसमे हम ...
भिगो दे उस आंचल को ,
या वो सीने से लगा ले अब..!!
सिसकती राते और जलते हुए हम..
बैचैनिया दीमक बन गई है..
छटपटाता है व्याकुल मन..
अकेलेपन की ज्वाला..
ख़ुद को जलाती है हर दम..
प्यार का प्यासा बचपन..
आज भी तडफता है..
रोता है रोम रोम कभी, तो
सुलगती है आत्मा अकेले में हर दम..
कोई साथी, कोई सहारा ना हुआ..
जिसको भी अपनाना चाहा
ख़ुद में ही सिमटा सा मिला.
सिसकती राते और जलते हुए दिन..
जिंदगी कट रही है..यू ही..
कट जायेगी एक दिन
यू ही दब के गमो से
मर जायेगी तनहा एक दिन... !!
आहो के तूफ़ान से सहमे खामोश लब
कब तक जी पाएंगे यू उदास सी जिंदगी..
कब तक छुपा पाएंगे यू आँखों की नमी हम ...
वो दामन भी नही..
जाकर छुप जाए जिसमे हम ...
भिगो दे उस आंचल को ,
या वो सीने से लगा ले अब..!!
सिसकती राते और जलते हुए हम..
बैचैनिया दीमक बन गई है..
छटपटाता है व्याकुल मन..
अकेलेपन की ज्वाला..
ख़ुद को जलाती है हर दम..
प्यार का प्यासा बचपन..
आज भी तडफता है..
रोता है रोम रोम कभी, तो
सुलगती है आत्मा अकेले में हर दम..
कोई साथी, कोई सहारा ना हुआ..
जिसको भी अपनाना चाहा
ख़ुद में ही सिमटा सा मिला.
सिसकती राते और जलते हुए दिन..
जिंदगी कट रही है..यू ही..
कट जायेगी एक दिन
यू ही दब के गमो से
मर जायेगी तनहा एक दिन... !!
तेरी मज़बूरी..
उदास राते बितायी हमने...मजबूर आँखे जब तेरी देखी
खवाब अपने ही मसल डाले...ना उमीदी ने जब हाथ बढाए
गैरो की बेवफाई का क्या शिकवा ...अपनी वफ़ा ही ना जब रास आए..
दिल के टुकड़े हो गए हजारो.. वो काली रात जब याद आए
दर पे सदके किए थे कितने ..अश्को के हमने मोती बहाए..
वफ़ा-ऐ-मोहोबत में रोते रहे हम..वफ़ा की चिलमन में दिल जलाए..
शोला बन गया प्यार का गम .नासूर बन जख्म सब रिसने को आए..
तेरी मोहोबात कैसे भुला दे...तुझ से ही थे गम ने चैन पाये..
आज मोहोब्बत भी रोती है मेरी...तेरी मज़बूरी जब मुझको सताए..
Tuesday, November 11, 2008
Saturday, November 8, 2008
तुम्हे पाकर..
अधूरापन ख़तम हो जाता है तुम्हे पाकर
दिल का हर तार गुनगुनाता है तुम्हे पाकर...
Sunday, November 2, 2008
गमों ने आज फ़िर रुला दिया..
ना जाने क्यों गमों ने आज फ़िर रुला दिया
गमों पे हसने वाला सागर आज फ़िर कराह उठा..
ढेरो आंसू लिए दामन में.. दिल को फ़िर छलका गया..
न जाने क्यों गमों ने आज फ़िर रुला दिया..
पैबंद हँसी के लगाये फिरता था सागर ख़ुद पर..
तार तार कर गमों ने आज फ़िर मुझे रुसवा किया..
बे-रहम जख्मों के नासूर उभर ही आए है
जब की खामोशियों में सागर ने ख़ुद को डुबो दिया..
न जाने क्यों आज गमों ने फ़िर रुला दिया..
मरने भी नही देती ये दुनिया-दारी मुझको..
कर्तव्व्यो का बोझ जो मेरे संग डोली में आ गया..
लुटा लिया अपना वजूद गैरो की खुशियों के लिए ...
फ़िर भी अपना दिल आज बरबाद-ऐ-शहर सा हो गया..
न जाने क्यों गमों ने आज फ़िर रुला दिया..
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