थकने लगी है
मजबूरिया जो इतनी
निष्ठुर हो चली है..
अथक प्रयास कर के भी,
कोई उम्मीद जगती नही है..
कि तिनका-तिनका हो
चाहते बिखर सी गई है..!!
मुस्कान भी अब मेरी
मायूस होने लगी है..!!
श्वासों की लय, जो
डर डर के चलती है..
कि जाने कोन से पल में
क़यामत छुपी है..
हर आहट में जैसे
तुफानो की सरगोशी है..
टूट गई अब के तो ..
संभलने की ताकत भी नही है..
मुस्कान भी अब मेरी
पथराने लगी है..!!
गहरी नींद से यू
हडबडा के उठ जाती हू,,
काली रात में
अपने ही साए से डर जाती हू..
मन रूपी दीपक जलता है..
बिरहन सी तड़प लिए..
बेचैन साँसों के गुबार में
ज्यूँ तन्हाई पलती है..
थक चुकी है वो भी
अब मेरे आलिंगन में॥
की आँख भी अब मेरी
डब-डबाने लगी है..
मुस्कान भी अब होठों की
फीकी पड़ने लगी है..!!