Tuesday, January 6, 2009

बेकरारी

तुमने मुझे करार दिया
में फ़िर भी बे-करार रही..
जहाँ जहाँ खुशियों ने द्वार खोले..
गम की परछाई भी चली आई..
अश्क जब भी सूखने चले थे..
दिल की दर --दीवार से..
तब ही जाने कहाँ से गए..
जख्म कुछ नासूर से..
तुमने मुझे प्यार दिया..
मैं फ़िर भी एक प्यास रही..
हर कदम पे मैंने तो हसना चाहा..
हर गम को हँस के पीना चाहा..
हंस भी ली थी, हर दर्द पे मैं तो..
फ़िर जाने ये आंसू क्यों गए॥ !!
अब तो मैं हर मुस्कराहट से डरती हू..
हर खुशी दुःख लाएगी ये जान गई हू..
हर साँस में तूफ़ान आने का डर लगता है..
क्यों चल रही है साँसे ..
मैं अब इस जिंदगी से डरती हू..!!

4 comments:

chopal said...

भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति है। बहुत अच्छी रचना है।

Pratik Maheshwari said...

बहुत ही दर्द भरी कविता...
अच्छी तरह शब्दों में पिरोया है...
- शुभकामनाएं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

zindagi se darr kar yun jiya nahi jaata.
karaar milane par bekaraar raha nahi jaata.

aapki ye tadap aur bekaraari bahut kuchh kahati hai.

dard se bhari rachna .ek aur jazbaaton ki sundar abhivyakti .

श्रद्धा जैन said...

तुम्हारी नजदीकियों से

मुश्किल राहे काफूर हो जाए..

तुम्हारे गेसुओ की छाव से

सूरज की तपिश भी दूर हो जाए..

जिस्मो के नर्म उजालो से..

मेर जिंदगी पुर-नूर हो जाए..

छुडा लो गर हाथ अपना तो

मेरी औकात ही क्या है..


wah kay kaha haiyahi to pyaar hai
zindgi hai
bahut bahut achha