Saturday, December 20, 2008

मुस्कान भी अब मेरी थकने लगी है..

मुस्कान भी अब मेरी
थकने लगी है
मजबूरिया जो इतनी

निष्ठुर हो चली है..


अथक प्रयास कर के भी,

कोई उम्मीद जगती नही है..

कि तिनका-तिनका हो

चाहते बिखर सी गई है..!!


मुस्कान भी अब मेरी

मायूस होने लगी है..!!


श्वासों की लय, जो

डर डर के चलती है..

कि जाने कोन से पल में

क़यामत छुपी है..


हर आहट में जैसे

तुफानो की सरगोशी है..

टूट गई अब के तो ..

संभलने की ताकत भी नही है..


मुस्कान भी अब मेरी

पथराने लगी है..!!


गहरी नींद से यू

हडबडा के उठ जाती हू,,

काली रात में

अपने ही साए से डर जाती हू..


मन रूपी दीपक जलता है..

बिरहन सी तड़प लिए..

बेचैन साँसों के गुबार में

ज्यूँ तन्हाई पलती है..


थक चुकी है वो भी

अब मेरे आलिंगन में


की आँख भी अब मेरी

डब-डबाने लगी है..

मुस्कान भी अब होठों की

फीकी पड़ने लगी है..!!


Tuesday, December 9, 2008

हाल-ऐ-मुहोब्बत

कुछ अपनों ने अपनों की खातिर
अपनों का दिल तोड़ दिया
और हमने उन अपनों की खातिर
अपनों को ही छोड़ दिया ... !!

क्या गुनाह किया था मैंने ....
जो तुमसे प्यार बढाया था .... !!
मजबूरिया थी माना,
पर क्यो तुमने बीच राह में छोड़ दिया ...!!

तूफा तो आते ही रहते है ....
जिंदगी की राहो में ...
झुक जाना तूफा के आगे
क्यों तुमने मंज़ूर किया .... !!

ना सोचा इक बार भी तुमने
ये सब कैसे हम सह पाएंगे
जार - जार रोयेंगे, पर ....
तुमको कुछ भी कह पाएंगे ...!!

हर लम्हा मौत का सामान बना ...
ये भी ना जाना तुमने ...
रोने की आदत है तुम्हारी .....
यू कह, हर ज़ज्बात को नोच दिया .... !!

भूल जाओ सब, छोड़ दो हमको,
ये कह, तुमने हमको छोड़ दिया ...
और हमने देखो, आपकी खातिर ...
जीना भी अब छोड़ दिया ... !!

जी तो चाहता है कि ...
तोड़ दू सब रिश्ते - नातों को ...
दर्द से बिलबिलाती रगों को
नोच
डालू अपने तन - मन से !!
आग लगा दू सारे जहा को
कि क्यो यहाँ मुझे पैदा किया ...!!

क्यों बनाई पहले मुहोब्बत,
फ़िर क्यों मज़बूरी को बना दिया ...
रोते है दिन रात इस दर्द--गम में ...
टूट टूट कर मन आहत हुआ ...

तोड़ दिया दिल उसने ही ....
जिससे बे-इन्तहा प्यार किया ....
रोता मन है, रोती आत्मा ,
क्यों हाल ये आज मेरा हुआ ... !!

Friday, December 5, 2008

aawaaz kyu nahi aati...

दिल टूटता है तो आवाज क्यों नही आती..
आँख रोती है तो बरसात क्यों नही आती..
जाते है ज़लज़ले...जिंदगी के चमन में..
डूब जाती है जिंदगिया..मगर.....,
महबूब के दिल तक आवाज़ भी नही जाती..

रहमो करम पे ही क्यों जिन्दा है मोहोब्बत दुसरो के..
तड़फ तड़फ कर भी उजालो की शुरुआत नही आती.
महबूब ही करे जब कोई चोट तो..
दिल को मर कर भी मौत क्यों नही आती..

जिंदगी है की उजडती जाती है पत्ता-पत्ता तमाम उमर
जख्म--लहू रिसने पर भी धड़कने मौत नही लाती...
गमो की काली रातो से कब्रिस्तान-ऐ-जिंदगी बन ही जाती है..
रोती है कायनात भी मुझ पर..मगर साँस ही नही जाती..
मांगती हू मौत, मगर मौत भी तो नही आती...

दिल टूटता है तो आवाज क्यों नही आती..
आँख रोती है तो बरसात क्यों नही आती..

मुह फेर लिया उसने, मोहोब्बत जताने को बाद..
दिल तोड़ दिया उसने, दिल में बसाने के बाद..
'छोड़ दिया तुम्हे' ये सुन भी साँस क्यों नही जाती..
बैठी हू किस उम्मीद पर..ये जान क्यों नही जाती..

लहूलुहान सी जिंदगी में अब बाकि क्या बचा है..??
ख़तम हो गया सब कुछ तो अब मैं मर क्यों नही जाती..

दिल टूटता है तो आवाज क्यों नही आती..

Saturday, November 15, 2008

सिसकती राते..

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सिसकती राते और जलते हुए दिन
आहो के तूफ़ान से सहमे खामोश लब
कब तक जी पाएंगे यू उदास सी जिंदगी..
कब तक छुपा पाएंगे यू आँखों की नमी हम ...

वो दामन भी नही..
जाकर छुप जाए जिसमे हम ...
भिगो दे उस आंचल को ,
या वो सीने से लगा ले अब..!!

सिसकती राते और जलते हुए हम..

बैचैनिया दीमक बन गई है..
छटपटाता है व्याकुल मन..
अकेलेपन की ज्वाला..
ख़ुद को जलाती है हर दम..

प्यार का प्यासा बचपन..
आज भी तडफता है..
रोता है रोम रोम कभी, तो
सुलगती है आत्मा अकेले में हर दम..

कोई साथी, कोई सहारा ना हुआ..
जिसको भी अपनाना चाहा
ख़ुद में ही सिमटा सा मिला.

सिसकती राते और जलते हुए दिन..
जिंदगी कट रही है..यू ही..
कट जायेगी एक दिन
यू ही दब के गमो से
मर जायेगी तनहा एक दिन... !!

तेरी मज़बूरी..

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उदास राते बितायी हमने...मजबूर आँखे जब तेरी देखी

हसीन सपने सब तोड़ डाले...राहों में तेरी जब शूल आए..

खवाब अपने ही मसल डाले...ना उमीदी ने जब हाथ बढाए
गैरो की बेवफाई का क्या शिकवा ...अपनी वफ़ा ही ना जब रास आए..

दिल के टुकड़े हो गए हजारो.. वो काली रात जब याद आए
दर पे सदके किए थे कितने ..अश्को के हमने मोती बहाए..

वफ़ा--मोहोबत में रोते रहे हम..वफ़ा की चिलमन में दिल जलाए..
शोला बन गया प्यार का गम .नासूर बन जख्म सब रिसने को आए..

तेरी मोहोबात कैसे भुला दे...तुझ से ही थे गम ने चैन पाये..
आज मोहोब्बत भी रोती है मेरी...तेरी मज़बूरी जब मुझको सताए..

Tuesday, November 11, 2008

उजड़ी मुहोब्बत..

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रोता है फलक..
रोती कायनात है..
अफ़सोस मगर ये साँसे..

छोड़ती न मेरा साथ है..

कितना ज़लील करेगी॥

तू ओह जिंदगी..

बस कर..अब बस भी कर

जुल्म ढाना ..

हम बदनसीबो पर..


आज इस मुकाम पर

ये सब भी देखना बाकी था..???

क्यों न धरती फटी..

और क्यों न दम तोडा

इन बे-हया सी सांसो ने..


क्या बिगाडा था हमने

इस जहा का..

दो प्यार भरे दिलो को

जो ऐ मुकद्दर

तूने यू उजाड़ दिया..


ठोकरे, जलालत और

रुसवाईया ही देना काम है

ऐ जिंदगी क्या तेरा??

क्या गुजरी उस शख्स पर..

जिसने ये सब सहा??

क्या कभी तूने ओ खुदा

पलट के भी जाना किया..??


प्यार शब्द दे दिया

इस दुनिया में ..

बस महसूस करने के लिए..

जब भी इसके अर्थो को

जीना चाहा....

तब..तब

जिंदगी नरक कर दी ओ खुदा

तूने अपने बाशिंदों की..


चाह कर भी मैं

आज उसे सुकून दे न सकी..

मरहम उसके घावो पर

मैं लगा न सकी..

वो तड़पता रहा

तमाम शब्

अंगारों पर सोता रहा..!!

मैं उसकी इस वेदना पर..

सीने से भी उसे

लगा न सकी..!!


उसकी आँख रोती थी तो..

मैं दामन बन जाती थी..

उसे दर्द होता था तो..

मैं दवा बन जाती थी..


आज देखो...

देखो आज उसे..

वो लम्हा लम्हा मर रहा है..

एक एक पल उसका सिसक रहा है..

और मैं हू कि यहाँ..

दूर, बहुत दूर

सिर्फ़ और सिर्फ़

तमाशाई बनी

देखती हू...!!


आह ...


चरम सीमा है

आज इस व्याकुलता की..

मज़बूरी की,

विवशता की...


उफ़ ..

नही चाहिए

ये बे-रहम जिंदगी..

नही चाहिए..

ये तेरी दुनिया..

नही चाहिए..

ये मोहोब्बत..


हो सके तो ओ खुदा

आज बस एक इनायत कर दे..

मेरे हमराज़ को

वो..सुकून दे दे..

वो पहला सा

गरूर दे दे..

वो पहली सी..

जीने की ताकत दे दे..!