मेरी छोडो ना तुम अपनी कहो
ना मेरी सुनो, कुछ अपनी कहो..
क्या बीती तुम पर,
जब ये दिल टूटा,
क्या हुआ असर..
जब प्यार तुम्हारा लुटा ..
क्या हुआ था तब,
तुम पर जब ऊँगली उठी..
क्या बीती तुम पर...
जब कहर की रात ढली..
कैसे शब् पर रोई तुम..
कैसे मद्धम सांसे टूटी,
मेरी छोडो ना ,
तुम अपनी कहो...
कैसे दर्द सहा...
कैसे आहे फूटी..
क्या बीती तुम पर
जब अरमानो की ख़ाक उडी..
तुम तो बहुत नाज़ुक हो,
कैसे ये गम सह पाई,
कैसे तुमने आंसू पिए..
कैसे जख्म-इ -जिगर सिये
कैसे सारे जुल्म सहे..
कैसे तुम बेहाल हुई..
मेरी छोडो न..
तुम अपनी कहो..
मत पूछो मुझसे..
क्या बीती मुझपे..
मैं तो बर्बाद था पहले भी..
थोडा सा बस और हुआ..
तुम्हे पाकर मैं..
सब गम भूल गया था..
पर अब तो मैं नासूर हुआ..
न झांको इन बेनूर सी आँखों में..
न मुझसे कोई सवाल करो..
उजड़ चुका सा शहर हु मैं..
और चलती फिरती लाश हु में..
मेरी छोडो न..
तुम अपनी कहो..
ना मेरी सुनो..
बस अपनी कहो...!!
3 comments:
अपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
वाह तान्या जी.....
बहुत खूब.....
मेरी छोडो न..
तुम अपनी कहो..
सच्चे प्यार को दर्शाती है आपकी ये रचना.....
क्या खूब लिखा है।
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