Monday, October 6, 2008

औरो का सहारा

न जाने क्यों मै
औरो का सहारा
तलाश करती हू!!


अपने अश्को के लिए
औरो का आँचल
तलाश करती हू
!!

फिजूल की कल्पनाओं में
यू ही जीती-मरती हू

जब की जानती हू कि...
यथार्थ मे,
मैं इस जहाँ मे नितांत अकेली हू॥


अपने काँटों की चुभन
ख़ुद को सहनी पड़ती है..

अपने दुखो वाली तकदीर भी
ख़ुद को ही झेलनी पड़ती है..
!!

फ़िर भी न जाने क्यों...??
मे औरो के कंधे तलाश करती हू॥

न जाने क्यों मे लोगो से
उनका साथ माँगा करती हू॥!!


दो बोल किसी ने बोल दिए तो ...
मान लिया की वो मेरे हो गए..

जब की हर गम मे ख़ुद को अकेले,
तनहा ही पाया करती हू॥


फ़िर भी न जाने क्यों मै
औरो का सहारा तलाश करती हू ..

अपने अश्को के लिए
औरो का आँचल तलाश करती हू॥

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

aap hi nahi har insaan zindagi men sahaare talaashta hai.aur saath milta bhi hai. par fir bhi sach to yahi hai ki zindagi ki har ladayi khud hi ladani padati hai.
ek sher yaad aa gaya ----
zindagi bhar rone se rone ka salika kho diya.
har nafas ke saath ye dariya dili achchhi nahi.
aap apnaa sahaara khud baniye isi kaamna ke saath.