Wednesday, October 8, 2008

खलिश सीने की....

खलिश सीने की दिन-रात जलाती है..
कशमोकश रातो की नींद भी खा जाती है..
कही कोई मंजिल नज़र नही आती है ...
बस जज्बातों के शोर मे आँख खुल जाती है..!!

व्याकुल मन उसके दिए दर्द में रोता है..
करवटे बदल बदल के इस शब् को ढोता है..
नम आँखों में दर्द भी भीग- भीग जाता है..
उफ़ मगर गम का पैमाना खाली ना हो पाता है...!!

मेरी बेचैनी हर पल काँटों पे चलती है..
तपिश जख्मो की लबो से "आह" बन निकलती है..
बंद करते ही आँखों मे गम सिमट तो जाता है ..
मगर सकूं साँसों को कहा मिल पाता है..!!

बिन आहट किए गम चला तो आता है..
क्या जानू किस मोड़ पर मुझसे नाता जोड़ लाता है...
दिल जार-जार हो जाता है इसकी राहगुज़र में..
मगर क्या मजाल की ये "गम" कभी मुजको छोड़ पाता है..!!

हा-हा-कार कर उठता है हर दिल का कोना..कोना..
मासूम रुखसारों पर अश्क ढलक ही जाता है..
कैसे ख़ुद को संभालू यारो...
अब ये दिल और दर्द ना सह पाता है..!!

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

bahut hi dard bhari rachna hai......
kyon tumne apane dil men dard ko basaa rakhaa hai?
dard ko seedhe apane ghar ka raasta dikha rakha hai.
kyon dard ko bhigo bhigo kar seenchati ho?
paimana khali na ho isliye kya
tullu pamp laga rakha hai?
........ye to thoda hansaane ki koshish thee....
aap apane dard ko bakhoobi bayan kar deti hain.thoda zindagi ke prati sakaraatmak bhi hoiye.
shubhkaamna ke saath