Tuesday, October 7, 2008

कैसे तूने तनहा सागर कैद कर दी......???

मेरे नसीब ने तकदीर मे तन्हाइया लिख दी ..
अश्को से लाबा-लब आँखे, और बिसुरती राते लिख दी..

वक्त की गर्दिश ने मेरी वाफाओ को भी न देखा..
सितमगर ने ही जिंदगी जब खिलवट-ऐ-दर्द कर दी...

उम्मीदों के सिरहाने से शब्-ऐ-रात अश्को को पोंछा किए..
तूने मगर ओ सितमगर न किसी सितम में कमी कर दी..

पयमाना-ऐ-दिल दर्द से सरो-बार जब हो ही चला..
जख्मो से लहू गिरने पर भी तूने ओ सनम न मरहम रख दी..

किस कदर कतरा -कतरा जिंदगी तार-तार होती रही..
मैंने भी उसूलो के दायरे मे अपनी गर्दन रख दी..

तमाम उम्र तनहा तेरी बे-वफाई पे सिसकती रही..
बे-गैरत मगर तुने भी दर्द देने की हद कर दी..

अफ़सोस होता है मुझे आज रह-रह कर अपने फैसलों पर
कैसे तेरी झूटी मोहोब्बत ने तनहा सागर कैद कर दी...

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मेरे नसीब ने तकदीर मे तन्हाइया लिख दी ..
naseeb aur takdeer dono ka ek saath prayog?????
kuchh nirnay lete samay socha nahi jaata...jab wo mann ko baandhane lagte hain har kadam mahsoos hota hai ki ye to nahi chaaha thaa tab aise hi haalaat se guzarataa hai insaan.

किस कदर कतरा -कतरा जिंदगी तार-तार होती रही..
मैंने भी उसूलो के दायरे मे अपनी गर्दन रख दी..

dil ka dard usoolon ke daayare men simat gaya hai.

तमाम उम्र तनहा तेरी बे-वफाई पे सिसकती रही..
बे-गैरत मगर तुने भी दर्द देने की हद कर दी..

अफ़सोस होता है मुझे आज रह-रह कर अपने फैसलों पर
कैसे तेरी झूटी मोहोब्बत ने तनहा सागर कैद कर दी...
jo kuchh bhi likha hai usake baad kuchh nahi bachata.
ek dard bhari rachna .

"Nira" said...

bahut ghahre ehsaas likhe hain
bhadai ho