Wednesday, October 22, 2008

तुम्हारी खामोशिया..

आज ये खामोशिया सिमटती क्यों नही
हाल--दिल आपके लब सुनते क्यों नही..

कभी तो फैला दो अपनी बाहों का फलक
आज मेरी आँखों की दुआ तुम तक जाती क्यों नही..

दर्द--दिल बार-बार पलकों को भिगो जाता है ...
आपका यु खामोश रहना मुझे भीतर तक तोड़ जाता है..

मुहोब्बत मेरी जिंदगी की मुझसे रूठने लगी है ..
अंधेरे मेरी जिंदगी की तरफ़ बढ़ने लगे है..

मेरी बे-इंतिहा मुहोब्बत का असर आज तुम पर होता क्यों नही..
मेरी आत्मा में बसे हो तुम, ये तुम जानते क्यों नही..

दिन-रात मेरी दुआओ में तुम हो ये तुम मानते क्यों नही..
कोई वजूद नही मेरा तुम बिन, ये तुम जानते क्यों नही

खामोश लब तुम्हारे आज बोलते क्यों नही
भेद जिया के मुझ संग खोलते क्यों नही..!!

3 comments:

Suneel R. Karmele said...

अच्‍छी ग़ज़ल लि‍खी है आपने, भाव अच्‍छे हैं, लेकि‍न अन्‍यथा न लीजि‍एगा, आप इसमें थोड़ी और मेहनत करती, तो शायद यह और उम्‍दा हो सकती थीं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

lab sun rahe hain isiliye khaamoshiyan hain..kaise tute khaamoshiiiiiiii?
aapne jo bhi likha hai ek gazal soch kar nahi likha hai.jyon ke tyon mann ke udgaar utaar kar rakh diye hain. aisa lag raha hai ki jo bhaav mann men aate gaye waise hi aap likhati chali gayin.
bahut bhavpurn rachna hai.

दिन-रात मेरी दुआओ में तुम हो ये तुम मानते क्यों नही..
कोई वजूद नही मेरा तुम बिन, ये तुम जानते क्यों नही॥
jise bhi chaahti hain aap bahut gahraayi se chaahti hain.
ACHCHHI BHAV-PRADHAAN RACHNA.

taanya said...

samwaidnaaye ji aapki tippanni acchhi lagi...u hi vivechna karte rahiye..intzar rahega...

sangeeta ji...apki ek line 'jise bhi chaahti hai aap bahut gehrayi se chaahti hai' dil ko chhuu gayi..

sahi kehte hai aap ki man k udgaar jyon k tyon bas utaar diye hai...

thanks for comments...

u hi saath dete rahe..