Saturday, September 20, 2008

रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..

रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..
शायद कोई खुशी का फूल खिले..
इसलिए जिंदगी को झूटी हँसी की सौगात देती हू..
रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..

भीगी पलकों से हर कांटे को बौछार देती हू..
शायद शूलो की चुभन कम हो जाए..
इसलिए इन्हे आंसुओ का सामान देती हू..
रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..!!

फलसफा सीखा था जिंदगी का..
की आज गमो को हँसी मे डुबो दो..
इसलिए बेहतर कल की आस मे मुस्कुरा देती हू..
रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..

कट चुकी है आधी जिंदगी मंजिलो की तलाश मे..
न मंजिले मिली ना जीने की नही राह..
इसलिए जिंदगी को और उमीदो का बहाव देती हू..
रेगिस्तान सी जिंदगी को बरसात देती हू..

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

falsafa zindagi ka achchha laga.
ummeed ka bahaav dena aur behtar kal ki aas men muskuraana. bahut khoob.