Wednesday, September 17, 2008

लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा.....

लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा - कतरा कर के....
भीतर ही भीतर ख़ुद ही में ये समा जाएगा..
तुमको तो पता भी न होगा..
कितने गम...कितनी तन्हाईया
ख़ुद ही मे ले कर मिट जाएगा..

लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा - कतरा कर के ...ख़ुद ही मे समा जाएगा..

भटकते भटकते एक दिन जब सांसे थक जाएँगी..
इन पथ्हर दिल इंसानों की नगरी से जब उमीदे टूट जाएँगी..
उपर वाले से लड़ते लड़ते जब तकदीर हार जायेगी..
उस दिन देखना तुम सागर को..
मगर फ़िर बी दर्द पर हस्ते सागर की
बस हँसी ही तुमको नज़र आएगी..

न जान पाओगे तब भी तुम...
कितने गम...कितनी तन्हाईया
ख़ुद ही मे ले कर..
ये सागर मिट जाएगा..सिमट जाएगा..!!

मेरी चाहत है की एक वक्त ऐसा भी हो जाए..
तुम मेरे लिए तद्फ़ो ..और मे इस जहान से रुखसत हो जाऊ..
तुम समझो तब अपनी बे-रुखिया ...अपने सितम..
तब तुम जी भर क रोवो....और मे भी तुमारी तरहे मुस्कुराती रहू..

सुना हे प्यार जब पुराना हो जाता हे तो
कोयले की तरेह भीतर से बस जलता रहता है..
आज मेरी भी हालत वही हो गई है..
और चाहत है की तुम वो ही कोयला बन जाओ..

देखना एक दिन यु ही दर्द से सारोबार जब ये हो जाएगा..
टूट कर जब ये नि-श्वास हो जाएगा..
लम्हा दर लम्हा सागर सिमट जाएगा..
कतरा कतरा कर के ...
भीतर ही भीतर ख़ुद ही मे ये समा जाएगा..
तुमको तो पता भी न होगा..
कितने गम...कितनी तन्हैया
ख़ुद ही मे ले कर ये सागर मिट जाएगा..

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