Thursday, September 18, 2008

मै और मेरी तन्हाई...

में और मेरी तन्हाई..
कब से फैले है..
मन-आंगन में..
बातें करते है..
क्यों तन्हाई तुम रोज़
चली आती हो..मेरे आँगन में..
बिन बुलाये - मेहमान की तरह..!!
रोज़ एक टीस लेकर आती हो..
मेरी आँखों को नमी देती हो
और फ़िर क्यों मेरी जिंदगी में..
चहू ओर मन-ओ-मस्तिष्क में..
अपना घर बसा कर
बैठ जाती हो...

मै और मेरी तन्हाई..
यु ही बातें करते है..

मै दूर जाना चाहती हू तुमसे..
मै हर रिश्ता तोर देना चाहती हु तुमसे..
मै नही चाहती तुम्हें...
कभी कभी तो भरी महफिल में भी
तुम मुझे आ सताती हो..
क्यों नही जाती तुम..
क्यों नही छोरती मेरा पीछा तुम..

मै और मेरी तन्हाई..
यू ही बातें करते है..!!

देर रात तक मेरे संग
मेरे सिरहाने लग...
मुझसे गल-बहिया डाल..
साथ सोयी रहती हो..
देर आँखों में बसी रहती हो..
अथहाह समुंदर की तरह ..
कोई किनारा तुमारा
नज़र भी नही आता..
जहा पर जा कर तुम्हें
छोड़ आऊ....

मै और मेरी तन्हाई..
अक्सर यू ही बातें करते है..

लील रही हो तुम....
मेरी जिंदगी को दिन-रत..और रात-दिन
मै खामोश पर कटे पंछी की तरह ..
बेबस बैचैन सी..
इस जिंदगी की डाल पर बैठी
मूक सी तुम्हें निहारती रह जाती हू..
कुछ नही कर पाती इसके आलावा..

मै और मेरी तन्हाई..
अक्सर यु ही बातें करते है..

सारी खुशिया तुम रोज़..हर रोज़
छीने जा रही हो मुझसे..
क्यों..आख़िर क्यों????
चाँद पलों की हसी को भी
तुम समेट लेती हो अपने दामन में..
जब से तुम आई हो
मै सब से दूर हो गई हु..
सब रिश्तो से मूक हो गई हू..
घुप अंधेरो में तुम मुझे
डुबोये रखती हो..
हर दम..हर पल..

मै और मेरी तन्हाई..
अक्सर यू ही बातें करते है..

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