Wednesday, September 17, 2008

दर्द को सीने से लगा कर भी आज करार नही..

दर्द को सीने से लगा कर भी आज करार नही..
नमी आँखों की छुपाना भी बस की बात नही..

किस से कहू..कैसे कहू दर्द-ओ-सितम उसके..
खरो.नचे दे दी बे-इंतिहा दिल पर जिसने..

सुलगी तमाम शब्, उसकी दी टीस ले कर..
कमबख्त जिंदगी फ़िर भी जिन्दा है..सब सह कर..

बर्बाद-ऐ-चमन मे दो फूल है बस..
जिनकी खातिर जिन्दा लाश जीती है बस..

खुदा ने भी बदकिस्मती से ऐसे मारा
जो न चाहा कभी वही नसीब बन गया..

हरसो चाहा....की कही ठहराव आ जाए..
चुप रह कर ही..कही जिंदगी मे करार आ जाए..

मगर दर्द को सीने से लगा कर भी आज करार नही..
नमी आँखों की छुपाना भी अब बस की बात नही..

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