Wednesday, September 17, 2008

आ जाओ ओ जान कहा हो,......???

आ जाओ ओ जान कहा हो, इस तन्हाई मे..
आन मिलो अब तो, इस काली अँधेरी रात मे..

मैं तनहा तद्पू अकेली भीगी भीगी पलकों मे.
गले लगा लो ओ जाना मुझे इस शब् की अंगडाई मे..

मेरे सूनेपन को सवारों..जरा अपनी बाहों मे भरो...
मेरा भी कोई है इस दुनिया मे..इस बात का जरा एहसास तो दो..

मैं प्यासी नदी, तुम मीठे सागर हो..
तृप्त करो इस सूखी नदिया को, मेरी बगिया भी हरी करो..

आ जाओ ओ जान कहा.न हो इस तन्हाई मे..
आन मिलो अब तो इस काली अँधेरी रात मे..

रात अँधेरी, व्याकुल मन, भटकू बियाबान जज्बातों क जंगल मे..
आ जाओ अब तो ओ जान मेरी, मेरे सुने-सुने जीवन मे...

मैं भी हस लू, मैं भी रंग भारू इस जीवन मे..
मैं भी जानू, कैसे खिलते है फूल घर-आँगन मे..

कैसे हृदये से ममता फूटे, कैसे तार बजे दिल मे..
आओ जान मुझे भी समझाओ, कैसे इन्द्रधनुष बने जीवन मे..

प्यार भरी दुनिया होती है अनोखी, कब से सुनती आई हु..
प्यार क रंग मे चुनरी रंग दो, फ़िर ख़ुद को देखू दर्पण मैं..

कैसे शर्माते है ख़ुद से, कैसे पलके झुकती है..
थोरा तो एहसास दिला दो, मेरे बंज़र से मन मे..

आ जाओ ओ जान कहा हो, इस तन्हाई मे..
आन मिलो अब तो, इस काली अँधेरी रात मे..

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