Wednesday, September 17, 2008

व्याकुलता..

पल पल विचरता अवसाद दिल-ओ-दिमाग मे
कूट कूट कर भरता जाता है...!!
बैचैन जज़्बात करवटे ले-ले कर
व्याकुल मन को अंगारों सी जलन देते है..!!
मानस-पटल पर एक आता है..एक चला जाता है
विचार....चल चित्र की तरेह...!!
बार बार नाज़ुक सी फूलो सी होठो की पंखुरिया..
आह भर कर रह जाती है..
घामा-ग़म शोर है जज्बातों का..
जो उद्वेलित किए जाता है...मेरे वजूद को...!!

कोंन है...??? कोंन है....???
जो अपनी जुदाई का मुझे एहसास दिए रहता है हर पल...!!
क्यों...???? क्यों....??? नम हो रही हे मेरी साँसे??
क्यों आख़िर क्यों इंतज़ार मे झुकती ही नही ये पलके???
जानती हु आज नही आएगा वो...नही आएगा अभी वो..
क्यों बारम-बार..फ़िर हर बार मन टीस से भर उठता है??

कैसी वेदना है???? कैसी पीरा है???
असेहनीये....हर अरमान को स्वाहा किए जाती है...
मेरी आँखे नम किए जाती है...!!
अथाह पीरा से बहर जाती हु मैं..!!
आह....!! आह...!! हे व्याकुल मन तू संभल
संभल....कुछ देर और संभल...!!

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